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वो शख़्स जिसकी ज़िंदगी मधुमक्खियों ने बचाई

बीस साल तक अमरीकी सेना में रहने के बाद एरिक ग्रैंडन के लिए ज़िंदगी आसान नहीं थी. आम नागरिक की तरह जीवन गुजारने में उनके सामने कई बाधाएं थीं.

सेना में रहते हुए वह छह बार मध्यपूर्व के खाड़ी देशों में गए थे. उन्होंने ऑपरेशन डेज़र्ट स्टॉर्म (1991) में भी हिस्सा लिया था.

इन सैन्य अभियानों ने उनके शरीर और मन पर गहरे घाव छोड़ दिए. 2005 में ग्रैंडन सेना से रिटायर हुए तो उनमें गल्फ़ वॉर सिंड्रोम और पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षण थे.

खाड़ी युद्ध में शामिल हुए कई पूर्व अमरीकी सैनिकों को यह बीमारी लग गई थी.

जंग की ख़ौफ़नाक यादें उनको सताती हैं. डरा देने वाली घटनाओं का फ्लैशबैक उनको परेशान करता है. ग्रैंडन के साथ भी यही हो रहा था.

2011 में वह एक भयानक फ्लैशबैक के शिकार हुए. उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया.

ग्रैंडन खुद से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे. उनका चेहरा सूज गया था.

दो दिन बाद उनके भाई अस्पताल में मिलने आए तो उन्होंने कहा कि वह एक वाइल्ड बीस्ट (अफ्रीकी जंगलों में मिलने वाला जानवर) की तरह दिख रहे हैं.

ग्रैंडन की पत्नी को भी उनको पहचानने में दिक्कत हो रही थी, जबकि वे 25 साल से एक दूसरे से दिल से जुड़े थे.

कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद ग्रैंडन को छुट्टी मिल गई. उन दिनों को याद करके वह बताते हैं, "कोई मेरी मदद नहीं कर सकता था. मुझे अंग्रेज़ी समझने में भी दिक्कत हो रही थी."

ग्रैंडन को फ़िजिकल थेरेपिस्ट असिस्टेंट की नौकरी छोड़नी पड़ी. अगले दो साल तक वह घबराहट और अवसाद से जूझ़ते रहे.

वह कोई नौकरी नहीं कर पाए. उनके मन में खुदकुशी करने के विचार आते थे.

ग्रैंडन कहते है, "हर सुबह मैं उठता था और सोचता था कि आज मैं खुदकुशी कर लूंगा." उन मुश्किल दिनों में मधुमक्खियों ने ग्रैंडन की मदद की.

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