दिल्ली की सड़कों पर लगातार तीन दिनों तक सिखों का संहार होता रहा. संसद ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई सिखों की हत्याओं की निंदा करते हुए कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं किया. जबकि नई सरकार के गठन के फौरन बाद जनवरी, 1985 में राजीव गांधी सरकार ने इंदिरा गांधी की हत्या और भोपाल गैस त्रासदी के मृतकों के प्रति दुख जताया. फरवरी 1987 में एक और चूक हुई. 1984 दंगों पर एक रिपोर्ट संसद में पेश की गई. सदन में भारी बहुमत का दुरुपयोग करते हुए राजीव गांधी सरकार ने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पर सदन में चर्चा की इजाज़त नहीं दी. संसद में हुई 21 साल बाद चर्चा इस मुद्दे पर संसद का मुंह दबाना सरकार के अपने उस अड़ियल रवैये को ज़ाहिर करता है, जो उसने सुप्रीम कोर्ट के कार्यरत जज की जांच में मिली क्लीन चिट के बाद हासिल किया था. मिश्र को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया, वो मानवाधिकार आयोग के पहले अध्यक्ष बने और फिर राज्यसभा में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. अगस्त 2005 में जब मनमोहन सिंह सरकार ने इसी विषय पर एक दूसरे जांच आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश की, तब जाकर 21 साल पुरानी घ